SAMAYKI,SULAGTE SAWAL;,SAHITY-SANSKRITI,ITIHAS,MEDIA
मैंने २३ जनवरी, 2009 के ब्लॉग में जो कुछ लिखा था, अब वही अक्षरशः सत्य होता जा रहा है। अमेरिका के ४४ वें राष्ट्रपति। बराक हुसैन ओबामा। दुनिया ने बहुत उम्मीदें लगा रखी हैं। भारत ने भी। अच्छा है , लेकिन ओबामा चाह कर भी अमेरिका की १० वर्ष आगे की उन नीतियों की लक्ष्मण रेखा लाँघ नहीं पाएंगे, जो पहले से खींच दी गयी हैं। अमेरिका अपनी आर्थिक मंदी को दूर करने के लिए किसी भी हद को पार कर सकता है।अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए वह अफगानिस्तान का कब्जा नहीं छोडेगा । वह इराक के तेल का दोहन जारी रखेगा क्योंकि अब तक उसने तेल के आधुनिक रास्ते निर्मितकर लिए हैं । साम्यवादी देशों को अब वह उभरने नहीं देगा। इस्राईल की सेना के प्रभुत्त्व को कम नहीं होने देगा।वह उसके सामरिक हितों को साधने वाला देश है और अमेरिका की३६% इकोनोमी जूस की है। मंदी में जूस उसके लिए मददगार साबित होंगे। वह अब ईरानके तेल के कुवों पर निगाह गडायेगा। पकिस्तान के एयर बेस और पोर्टों की उसे ज़रूरत है। वे उसके सामरिक हितों को पूरा करते हैं, इसलिए वह उसकी आर्थिक सहायता करता रहेगा। ओबामा मजबूर रहेंगे।भारत अमेरिका के लिए अभी फिलहाल बाज़ार से अधिक कुछ नही है। भारत को अभी लगातार निगाह रखने की ज़रूरत है। प्रतिक्रिया से बचे। बराक ओबामा ने अपनी वही मंशा स्टेट ऑफ़ यूनियन के अपने भाषण में व्यक्त कर दी थी। अब फिर नौजवानों को संबोधित कर उन्होंने साफ़ लफ़्ज़ों में कह दिया है कि वर्ड लीडर होने के नाते अमेरिका पिछड़ना गवारा नहीं कर सकता। हमें भारत से कड़े कम्पटीशन का सामना करना पड़ रहा है। दूसरे देश (जिसमें भारत भी शामिल है) नंबर वन की पोजीशन हासिल करना चाहते हैं और हर मोर्चे पर हमें इसका सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने अमरीकियों से उम्मीद की कि वे इस समस्या को गंभीरता से लेंगे। इसीलिए मैं कहता हूँ कि भारत अपनी विदेश नीति के ताने-बाने बहुत सोच-समझ कर बुनें। हमें इसपर भी निगाह रखनी होगी कि अमेरिका हमें किन मुद्दों और मामलों में अपनी गहरी दोस्ती का नाटक कर उलझाय रखने का प्रयास कर रहा है और CIA व् मोसाद मिलकर कौन से गुल खिलाने में व्यस्त हैं। ये दोनों देश जानते हैं कि भारत के अतिवादियों की कमजोरी क्या है । धार्मिक उन्माद और क्षेत्रीयतावाद हमें लक्ष्यों से भटका सकता है। समझदार लोग अभी भी नासमझी की राजनीति खेल रहे हैं। हमें बेहद सतर्क रहने की ज़रूरत है क्योंकि हमें एक साथ कई मोर्चों पर जूझना पड़ रहा है और हमें अपनी आज़ादी की सुरक्षा के लिए कितनी कुर्बानी देनी पड़ रही है।
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