जब बावा ने .../रंजनजैदी
हिन्दी आब्ज़र्वर के भी प्रिंटर पब्लिशर शम्सुज्ज़मान साहब ही जमा साहब संजय डालमियां का पीआर वर्क भी देखा करते थे। उन दिनों मैं इसी अखबार को ज्वाईन करना चाहता था और शम्स साहब भी चाहते थे के मैं इस अखबार को ज्वाईन करूँ । एक दिन उनहोंने होटल जनपथ की लाबी में काफ़ी के सिप लेते रहने के दौरान अपने दिल की बात कुछ इस तरह से कही के मैं चौंक पडा। उन्होंने मुझ से पूछा के क्या ये मुमकिन है की कमलेश्वर जी आब्ज़र्वर का सम्पादन सभाल लें ? मेरा जवाब था के उनसे पूछकर ही कुछ कहा जा सकता है। जमा साहब बहुत परेशान थे। उन दिनों वो आब्ज़र्वर के भीतर की उठा-पटक से चिंतित थे। कन्हय्या लाल नंदन सम्पादक थे, त्रिलौक्दीप उनके सहायक। कम्लेश्वेर जी से मैं रूटीन की तरह घर पर मिला और चर्चा की।उसवक्त उनके साथ भाभी यानी गायेत्री जी भी थीं और सम्बंधित मुद्दे पर वो चर्चा में शामिल भी थीं। ७०,०००/-की सेलरी पर बावा राज़ी हो गए। मैंने ये बात जमा साहब को बतादी। वो इस ख़बर से बहुत खुश नज़र आए। मेरे लिए भी ये एक अच्छा संकेत था। कमलेश्वर जी के साथ मैं दैनिक जागरण में काम कर चुका था।, और वैसे भी उनसे और उनके परिवार से मेरे पुराने सम्बन्ध थे, लेकिन एक दिन ख़बर आई की अखबार बंद हो गया .........
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