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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

जब बावा ने आब्ज़र्वर हिन्दी का संपादक बनना चाहा

जब बावा ने .../रंजनजैदी

हिन्दी आब्ज़र्वर के भी प्रिंटर पब्लिशर शम्सुज्ज़मान साहब ही जमा साहब संजय डालमियां का पीआर वर्क भी देखा करते थे। उन दिनों मैं इसी अखबार को ज्वाईन करना चाहता था और शम्स साहब भी चाहते थे के मैं इस अखबार को ज्वाईन करूँ । एक दिन उनहोंने होटल जनपथ की लाबी में काफ़ी के सिप लेते रहने के दौरान अपने दिल की बात कुछ इस तरह से कही के मैं चौंक पडा। उन्होंने मुझ से पूछा के क्या ये मुमकिन है की कमलेश्वर जी आब्ज़र्वर का सम्पादन सभाल लें ? मेरा जवाब था के उनसे पूछकर ही कुछ कहा जा सकता है। जमा साहब बहुत परेशान थे। उन दिनों वो आब्ज़र्वर के भीतर की उठा-पटक से चिंतित थे। कन्हय्या लाल नंदन सम्पादक थे, त्रिलौक्दीप उनके सहायक। कम्लेश्वेर जी से मैं रूटीन की तरह घर पर मिला और चर्चा की।उसवक्त उनके साथ भाभी यानी गायेत्री जी भी थीं और सम्बंधित मुद्दे पर वो चर्चा में शामिल भी थीं। ७०,०००/-की सेलरी पर बावा राज़ी हो गए। मैंने ये बात जमा साहब को बतादी। वो इस ख़बर से बहुत खुश नज़र आए। मेरे लिए भी ये एक अच्छा संकेत था। कमलेश्वर जी के साथ मैं दैनिक जागरण में काम कर चुका था।, और वैसे भी उनसे और उनके परिवार से मेरे पुराने सम्बन्ध थे, लेकिन एक दिन ख़बर आई की अखबार बंद हो गया .........

आज मीडिया को क्रियेटिविटी की ज़रुरत है : छोटा परदा जवान हो रहा है और जवानी में क़दम रखने वाले बच्चे काफ़ी नटखट, चंचल विद्रोही और इमोशनल हुआ करते हैं। छोटे परदे की लोकप्रियता में जहाँ कुछ महत्वपूर्ण धारावाहिकों की भूमिका रही है, वहीं सनसनी फैला देने वाले कार्यक्रम भी रहे हैं जिन्हें बुद्धिजीवी दिमागी खलल और भोंडा मनोरंजन की संज्ञा देंगे। सवाल यह है कि क्या मीडिया बुद्धिजीवियों के दिशा-निदेशन पर काम कर सकता है? यदि नहीं तो उसे के-वाइरस से ग्रस्त धारावाहिको , नागिनों, जादू-टोनों, ओझाओं के टोटकों, सनसनीखेज़ वारदातों और संगीत के विश्वयुध्हों का सहारा लेना ही पड़ेगा। क्योंकि हमारे देश के मीडिया का एक बड़ा दर्शक-वर्ग अभी भी आज़ादी से पहले रचे गए साहित्य के उस काल में जी रहा है जिसमें जादुई कहानियाँ लिखी जाती थीं। कहानी-किस्सों में परियां होती थीं और देव-दानवों के आतंक में सास, ननदें, वेश्याएं अपने-अपने चरित्रों को पलती-पोस्ती थीं। सातवें-आठवें दशक में इसी वर्ग ने हिन्दी पाकेट बुक्स को भी एक बड़ा बाज़ार दिया था..(मीडिया मंत्र, हिन्दी मासिक,नई दिल्ली, अक्टूबर,२००८)

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