समय बदल रहा है। बदलते समय के साथ हमारे समाज के रहन-सहन में बदलाव आता जा रहा है। विश्व की आर्थिक स्थिति तथा इन्टरनेट के रिश्ते ने हमारे सीखने की आदतों को भी प्रभावित कर दिया है। सीखने के नए तरीकों ने नई नस्ल को आज डिजिटल एज में पहुंचा दिया है। इस एज का अपना अलग एक चिंतन और व्यवहार है और सबसे अलग रहन-सहन का विशिष्ट तरीका भी। सूचना-तंत्र की अपनी गति और विशिष्ट शैली ने हमारे सामाजिक जीवन को इतना प्रभावित कर दिया है की डिजिटल एज से पहले की पीढ़ी आज न केवल हतप्रभ है बल्कि आश्चर्यचकित भी है। शोर के बढ़ते हुए ग्राफ ने नॉन डिजिटल एज की पीढ़ी को काफी असमंजस की स्थिति में ला खडा किया है। शोर ने उसे हायर एंड कारों की पिछली सीट तक आ दबोचा है, जहाँ टीवी सेट का प्रावधान होता है। पेन-ड्राईव में डाउनलोड त्वरित सूचना तकनीकी, उसी में एफएम रेडियो बिल्ट-इन और मोबाईल में मूवीस डिजिटल एज की पहली पसंद बन चुकी है। ये मोबाइल फोन, गेम्स और एसेमेस सहित इन्टरनेट गेमिंग-स्टेशन के आगे का पड़ाव है।...... टीवी के अनेक निजी चैनलों में आज भी दूरदर्शन की अपनी मर्यादा है. दूरदर्शन को हम कितना ही कोसें, पर उसने मर्यादा को कायम रखा है । वह अपने देश की पहचान कराता है, अपने देश की मिली-जुली सभ्यता और संस्कृति से परिचय कराता है। वह देश में आज भी सबसे अधिक देखा जाने वाला चैनेल है। व्यवसाय में भी पीछे नहीं है । अगर वह राजनितिक प्रभावों, मीडियाकरों, दलालों तथा भ्रष्टाचार से मुक्त हो जाए तो आज भी वह सर्वोपरि है। उसके श्रोताओं की संख्या आज भी अत्यधिक है। उसके कार्यक्रमों में स्तरीयता होती है और उसके आधिकारियों, इंजीनियरों औरतकनीशियनों को अपने हुनर की समझ होती है और वे अपनी हदें जानते हैं.
bulandiyaan
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तुमको गर चाहिए बुलंदी तो, सायबां को तलाश मत करना/जिस सितारे को ढूंढते हैं
लोग, उस सितारे की तरह तुम बनना/इन खलाओं में और सूरज हैं,और सूरज में भी
समंदर हैं...
14 वर्ष पहले
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